शायद ही कोई ऐसा होगा जिसको यह नहीं पता हो कि Prithviraj Chauhan kaun the, आप में से लगभग सभी ने पृथ्वीराज चौहान के बारे में पढ़ा या सुना होगा। हो सकता है Samrat Prithviraj Chauhan के बारे में आपको जानकारी किसी फिल्म, टीवी सीरियल या किसी किस्सों-कहानियों में सुना या देखा होगा। आज की बढ़ती हुई इन्टरनेट की दुनिया में जहाँ कोई डाटा कितनी जल्दी से वायरल हो जाता है पता ही नही चलता और ऐसे में यदि व्हाट्सअप और फेसबुक के जरिये कुछ भ्रम फैला दिया जाए तो मालूम ही नहीं चलता कि ये गलत जानकारी है। हम अक्सर सोशल मिडिया में आकर इसलिए फंस जाते है क्योंकि हमें जानकारी का अभाव रहता है।
जब बात देश के ऐसे राजाओं की हो जिनके बारे में इतिहास के पन्नों में भी जानकारी दुर्भाग्यवश कम दी गई है तो इन सोशल मिडिया पर प्रचारित जानकारी पर ही यकीन कर लिया जाता है।
शत्रु करे जिसका अंतिम सांस तक बखान, नतमस्तक था जिसके आगे दिल्ली का सुल्तान ।
जिसकी वीरता बनी घर घर की आन, आज हम बात करेंगे उनकी जो है पृथ्वीराज चौहान ।।
इस ब्लॉग के माध्यम से इनसाइट राजस्थान आपके लिए लाया है एक ऐसे ही राजपूत राजा पृथ्वीराज चौहान का इतिहास जिसके बारे में कुछ लोगों में भ्रान्ति रहती है कि वह एक काल्पनिक राजा थे। ऐसा इसलिए भी माना जाता है कि पृथ्वीराज चौहान के मित्र चंद बरदाई द्वारा लिखित पृथ्वीराज रासो में कई चीज़ों का जिक्र बड़े काल्पनिक ढंग से हुआ है। आइये चलते हैं कि क्या है हकीकत और क्या है फ़साना!
Legendary Rajput King Prithviraj Chauhan History
जब हम पृथ्वीराज चौहान की बाते करते हैं तो वह सम्राट पृथ्वीराज चौहान तृतीय थे जिनके बारे में कई धारणाएँ प्रसिद्ध है। यह वही राजा है जिन्होंने मोहम्मद गौरी को युद्ध में परास्त कर दिया था अपनी वीरता का परिचय समूचे भारत को कराया। यह वही हिंदू राजा है जो संयोगिता को उसके स्वयंवर से उठा लाए थे और अपने प्रेम प्रसंग को जग जाहिर व्यक्त किया। समझते हैं डिटेल में Prithviraj Chauhan History in Hindi!
पृथ्वीराज चौहान का इतिहास अपने आप में बड़ा रोचक है क्योंकि उनके बारे में अधिकांश वृतांत पृथ्वीराज रासो में लिखित है जो आदिकाल यानी साल 1000-1400 के दौर की रचना मानी जाती है। इसमें बताया गया है कि Prithviraj Chauhan ke pita ka naam सोमेश्वर चौहान था जिनकी शादी दिल्ली के राजा अनंगपाल की बेटी कमला से हुई थी। आपको बता दें कि पृथ्वीराज चौहान का जन्म 1166 ई. में अजमेर शासक सोमेश्वर के घर में हुआ था। इनके जन्म की स्मृति में Prithviraj Chauhan Jayanti पूरे राजस्थान प्रदेश में बड़ी धूमधाम से मनाया जाता है।
अनंगपाल चौहान की दूसरी बेटी का विवाह कन्नौज के राजा विजयपाल से हुआ था जिनसे जयचंद का जन्म हुआ। अनंगपाल चौहान के कोई पुत्र नहीं होने के कारण उनका दिल्ली साम्राज्य खतरे में था। ऐसे में उन्होंने अपने प्रिय नाती Prithviraj Chauhan 3 को गोद ले लिया और अनंगपाल के दूसरे नाती जयचंद को इस बात का बुरा लगा। बचपन में ही कुशल योद्धा रहे सम्राट पृथ्वीराज चौहान तृतीय ने युद्ध के कई गुण सीख लिए थे। बाल्य काल में ही उनके अंदर योद्धा बनने के सभी गुण आ गए थे। आगे चलकर उन्होंने उत्तर भारत में बारहवीं सदी के उत्तरार्ध में अजमेर और दिल्ली दोनों पर राज किया था।
Unveiling Iconic Warrior-King Prithviraj Chauhan
अपने पिता की मृत्यु के बाद, मात्र तेरह वर्ष की उम्र में पृथ्वीराज चौहान ने राज गद्दी संभाली। लगभग 1177 ई. में सिंहासन पर बैठते हुए, युवा पृथ्वीराज तृतीय को एक बड़ा साम्राज्य विरासत में मिला जो उत्तर में थानेसर से लेकर दक्षिण में मेवाड़ तक फैला हुआ था। लेकिन सत्ता संभालने के कुछ ही समय बाद, उन्हें अपने चचेरे भाई नागार्जुन के विद्रोह का सामना करना पड़ा जिसे पृथ्वीराज ने बेरहमी से कुचल दिया।
मध्यकालीन भारत के एक जाने-माने इतिहासकार सतीश चंद्र ने अपनी पुस्तक में जिक्र किया है कि पृथ्वीराज ने तत्काल प्रसार की नीति अपनाई और कई छोटे-छोटे राजपूत राज्यों पर जीत हासिल की। गुजरात के चालुक्य राजा के ख़िलाफ़ संघर्ष में वो सफ़ल नहीं हुए इसलिए गंगा घाटी की ओर मुड़ गए। पृथ्वीराज ने बुंदेलखंड की राजधानी महोबा के ख़िलाफ़ युद्ध अभियान चलाया और यही वो संघर्ष था जिसमें ‘आल्हा’ और ‘ऊदल’ नाम के मशहूर योद्धा मारे गए थे।
हालांकि प्रचलित कहानियों और आल्हा खंड में ये कहा जाता है कि पृथ्वीराज चौहान से लड़ाई में ऊदल मारे गए थे जिसका बदला लेने के लिए आल्हा ने पृथ्वीराज चौहान से जंग लड़ी और उन्हें हराकर गुरु के कहने पर जीवनदान भी दिया लेकिन इन कहानियों का कोई प्रमाण मौजूद नहीं है। सतीश चंद्र के अनुसार, कन्नौज के जयचंद ने इस संघर्ष में महोबा के चंदेल राजा की मदद की थी। दिल्ली और पंजाब पर नियंत्रण के प्रयासों का गहड़वालों ने भी मुकाबला किया था। इसी दुश्मनी के चलते पंजाब से गज़नवियों को बाहर करने के लिए राजपूत राजाओं का आपस में मेल संभव नहीं हो पाया।
Romantic Story Behind Sanyogita-Prithviraj Chauhan
गहडवाल राजा जयचंद को पृथ्वीराज की बढ़ती महत्वाकांक्षाएं और क्षेत्रीय विस्तार पसंद नहीं था बल्कि उन्हें अनंगपाल द्वारा दी गई पृथ्वीराज को दिल्ली की सत्ता से ईर्ष्या रहती थी। ऐसे में घाव पर नमक ओर गिर गया जब उसकी बेटी संयोगिता और पृथ्वीराज के बीच प्रेम प्रसंग सामने आया। Prithviraj Raso में लिखा है कि जयचंद ने एक यज्ञ का आयोजन करवाया और अपनी बेटी संयोगिता का स्वयंवर रखा था।
इस यज्ञ में पृथ्वीराज नहीं आए और गुस्से में जयचंद ने पृथ्वीराज की मूर्ति दरवाज़े पर रखवाई थी। संयोगिता को पहले से पृथ्वीराज पसंद थे जब संयोगिता की अपने पसंदीदा राजा को माला डालने की बात आई तो राजकुमारी ने पृथ्वीराज चौहान की मूर्ति पर माला डालकर अपने प्रेम का इज़हार किया। बाद में पृथ्वीराज वहाँ आए और कन्नौज के सैनिकों का मुकाबला करते हुए संयोगिता को दिल्ली ले आए।
इस घटना से Prithviraj Chauhan Father in Law जयचंद और पृथ्वीराज के बीच रिश्ते और ख़राब हो गए। माना जाता है कि यह घटना 1191 ई. में तराइन के पहले युद्ध के बाद और 1192 ई. के तराइन के दूसरे युद्ध से कुछ समय पहले हुआ था, लेकिन Prithviraj Chauhan Wife संयोगिता प्रकरण का ऐतिहासिक महत्व अभी भी विवाद का विषय बना हुआ है।
How Prithviraj Chauhan Died?
पृथ्वीराज चौहान की मृत्यु को लेकर इतिहासकारों के कई मत मौजूद है लेकिन सभी मतों में तराइन का द्वितीय युद्ध सामान्य हैं जो युद्ध मोहम्मद गौरी और पृथ्वीराज चौहान के बीच 1192 ई. में हुआ था। 1190 ई. के अंत में, मोहम्मद गौरी ने पृथ्वीराज की बठिंडा को अपने कब्जे में ले लिया। जैसे-जैसे मोहम्मद गौरी की सेना सीमा पर छापे डालती गई, दिल्ली में चौहान प्रतिनिधि ने पृथ्वीराज से मदद की मांग की, जिसके बाद पृथ्वीराज ने मोहम्मद गौरी के खिलाफ तुरंत अभियान चलाया।
दोनों सेनाओं ने 1191 ई. में तराइन के मैदान में भीषण युद्ध किया जिसमें मोहम्मद गौरी गंभीर रूप से घायल हो गए और वह युद्धभूमि से भाग खड़े हुए। जहाँ एक तरफ मोहम्मद गौरी ने फारसियों, अफगानों और तुर्कों से मिलकर कहीं अधिक मजबूत सेना पृथ्वीराज के खिलाफ खड़ी की और वहीं दूसरी तरफ राजपूत सेना अंदरूनी कलह और दुश्मनी के चलते कमजोर पड़ रही थी।
इसी का फायदा उठाते हुए मोहम्मद गौरी ने 1192 ई. में फिर से तराइन का द्वितीय युद्ध किया जिसमें गौरी सेना ने युद्ध रणनीति में बदलाव करते हुए पृथ्वीराज की सेना को हरा दिया। पृथ्वीराज को युद्ध क्षेत्र में पकड़ लिया गया और बाद में राजा और उसके कई सेनापतियों को मार डाला गया। पृथ्वीराज रासो के अनुसार, पृथ्वीराज का ध्यान तराइन के द्वितीय युद्ध के दौरान संयोगिता पर ज़्यादा रहा जिससे वह युद्ध रणनीति नहीं बना पाए। इस काव्य ग्रन्थ के मुताबिक पृथ्वीराज को पकड़कर गजनी ले जाया गया जहाँ पीछे से कवि चंद बरदायी भी पहुंच गए।
Different Historical Sources About Prithviraj Chauhan
कहा जाता है कि पृथ्वीराज की गजनी में जाकर आँखे निकाल ली थी ताकि उसे दर्दनाक मौत दे सके। लेकिन चंद के दोहे के इशारे पर पृथ्वीराज ने शब्दभेदी बाण चलाकर पहले गौरी को मारा और फिर एक-दूजे को मारकर मर गए। चंद ने यह दोहा बोला ‘चार बांस, चौबीस गज, अंगुल अष्ट प्रमाण, ता ऊपर सुल्तान है मत चूके चौहान’। लेकिन कई इतिहासकारों जैसे कि पंडित गौरीशंकर हीराचंद ओझा ने भी ‘पृथ्वीराज रासो’ के कुछ कथाओं को कल्पना और तथ्यों से दूर बताया है।
सतीश चंद्र की मध्यकालीन भारत की किताब में लिखा है कि तराइन के द्वितीय युद्ध में हारने के बाद गौरी ने Dharti ka Veer Yodha Prithviraj Chauhan को कुछ समय तक अजमेर पर शासन करने की अनुमति दी गई जिसकी पुष्टि युद्ध के बाद के दिनांकित सिक्के मिले हैं जिनमें एक तरफ तो ‘पृथ्वीराज देव’ लिखा है और दूसरी ओर ‘श्री मोहम्मद साम’ लिखा है। कुछ दिनों बाद, पृथ्वीराज को तथाकथित षड्यंत्र के आरोप में मार डाला गया और उसके स्थान पर Prithviraj Chauhan Son गोविंदराज चतुर्थ को राजगद्दी पर बैठाया। बाद में गोविंदराज चौहान रणथंभौर चले गए और एक शक्तिशाली चौहान राज्य वहाँ बसाया। इससे दिल्ली और पूर्वी राजस्थान दोनों तुर्क शासन के अधीन हो गया था।
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